नाव हूँ
मैं बस एक नाव हूँ।
बिखरे आसमान में चुभता बादल हूँ,
चिरता चिल्लाता बिजली बारिश में हूँ।
बिखरे आसमान और पतझड़ में,
खुद-खुद ही को पार लगाया हूँ।
मैं बस एक नाव हूँ।
......
किनारे आते-जाते हैं,
पर मैं कहाँ ठहर पाता हूँ।
हर किनारे से बस गीला नोंक लिये आता हूँ।
पानी में होकर भी कीचड़ से ढोये रहता हूँ,
तो कलंकित हूँ नजरों में।
फिर भी तैरते रहता हूँ,
मैं बस एक नाव हूँ।
......
कर्म में है जो तैरना,
मैं कहाँ किनारे पर ठहर पाता हूँ।
किनारे की हर इंच से,
जो पानी पीछे छोड़ आता हूँ।
हर बूंद से है मेरा एक रिश्ता,
पर साथ कहाँ निभा पाता हूँ।
मैं बस एक नाव हूँ।
......
लोग कहते हैं,
हवा से तो मेरा सम्बन्ध है।
बोले जब हवा पाल से ही ख़फा है,
हर झोंके से दूर धकेलता है।
अब इस झगड़े में,
मैं किनारे से दूर चला जाता हूँ।
मैं बस एक नाव हूँ।
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